टमाटर की उन्नत खेती
टमाटर बहुत प्रचलित वर्षभर उगाई जाने वाली फसल है। टमाटर के फल बाजार में वर्ष भर उपलब्ध रहते हैं। टमाटर का प्रयोग लगभग सभी सब्जियों के साथ किया जाता है। पके हुए फल सलाद के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। टमाटर सॉस, केचप, चटनी बनाकर भी ऑफ सीजन के समय प्रयोग में लाये जाते हैं।
जलवायु –
टमाटर गर्म जलवायु का पौधा है, इसकी उपयुक्त खेती करने के लिए पाला रहित स्थान अथवा ऐसे स्थान जहाँ पर कुद समय के लिए पाला पड़ता है, खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। सफलतम खेती करने के लिए 15° सेल्सियस से 30° सेल्सियस तक तापक्रम तथा 60 प्रतिषत से 80 प्रतिशत नमी होना आवश्यक है।
वायुमण्डलीय नमी कम होने व तापक्रम अधिक होने पर फलों की सेटिंग रूक जाती है। इसके विपरीत अधिक नमी व तापक्रम होने पर पौध व फलों में सड़न पैदा हो जाती है। अच्छे पके हुए फल गर्म व पर्याप्त धूप होने पर ही प्राप्त होते हैं। अत्याधिक बरसात वाले क्षेत्र में टमाटर की खेती नहीं की जानी चाहिए। तापक्रम टमाटर की खेती को निम्न प्रकार प्रभावित करता है।
- यद्यपि टमाटर का बीज 22° सेल्सियस तापमान पर उग जाता है किन्तु अच्छी प्रकार बीज उगाने के लिए 24° सेल्सियस से 30° सेल्सियस तापक्रम उपयुक्त रहता है।
- पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए 28° सेल्सियस से 30° सेल्सियस तापक्रम उपयुक्त होता है। अधिक तापक्रम पर फूल झड़ जाते है, अधिक तापक्रम गर्म हवाओं के साथ (35° सेल्सियस से 40° सेल्सियस) अत्यधिक हानि पहुँचाता है।
- 32° सेल्सियस से अधिक तापक्रम होने पर फलों में रंग नहीं आता है क्योंकि लाइकोपीन पिगमेन्ट कम हो जाता है।
टमाटर की खेती- उन्नत प्रजातियाँ –
पूसा हाइब्रिड- 2, 3, 5, वैषाली, मनीशा, नवीन, नवीन-2000 व syngenta हिमसोना,nunhems sampurna,US 2853,US1143
भूमि व भूमि की तैयारी
यद्यपि टमाटर की खेती कई प्रकार की भूमि में आसानी से की जा सकती है। किन्तु रेतली दोमट भूमि जिसमें चिकनी मिट्टी की उपलब्धता हो सर्वोत्तम रहती है। भूमि में जल निकास होना अति आवश्यक है। भूमि की पीएच 6 से 7 तक उपयुक्त रहती है।
भूमि की ऊपरी सतह साफ व ढेलों सहित बना लेनी चाहिए। पौध रोपण से खेत भुर भुरा बनाने के बाद 3 फीट की दूरी पर 20 सेमी0 चौड़ी व 20 सेमी0 गहरी नाली बनाकर 10 सेमी0 की गहराई तक गोबर की खाद से भर देना चाहिए, तथा पौध रोपण से पहले 15 ग्राम डी0ए0पी0 या एन0पी0के0 प्रति पौध को 5 सेमी0 मोटी मिट्टी की परत से ढक देना चाहिए।
बीज की बुवाई का समय तथा बीज की मात्रा
पर्वतीय क्षेत्रों के लिए बीज की बुवाई सितम्बर से अक्टूबर तथा फरवरी से मार्च में की जानी चाहिए।
हाइब्रिड टमाटर के लिए 3×2 फीट दूरी उपयुक्त रहती है। इसी दूरी पर पौध रोपण करने से 18150 पौधे प्रति हैक्टेयर आवश्यक होते है। टमाटर की नर्सरी 10-15 सेमी0 ऊँची क्यारियों में करते है, तथा इसे तज धूप व वर्षा से बचाते है। सामान्यतः हाइब्रिड बीज हेतु (100-125 ग्राम/हैक्टेयर) तथा सामान्य जाति के लिए (200-250 ग्राम/हैक्टेयर) की आवश्यकता होती है।
पौध तैयार करने के लिए प्लास्टिक क्रेट, लकड़ी की पेटियाँ, मिट्टी के बर्तन, तसले आदि का प्रयोग करना चाहिए, छोटे पॉली हाऊस बनाकर भी पौध तैयार की जा सकती है, पौध बोने के लिए एक भाग मिट्टी+एक भाग सड़ी गोबर की खाद+एक भाग रेत मिलाकर मिश्रण बनाते है तथा बीज बोने वाले बर्तन में भर लेते है। भली भाँति समतल करने के उपरान्त 5 सेमी0 की दूरी पर लाइन बनाकर बीज बो देना चाहिए तथा बीज को तैयार मिश्रण से भली भाँति ढक लेना चाहिए, तत्पश्चात हल्के फब्बारे के साथ सिंचाई कर अखबार के कागज से ढक देना चाहिए।
हाइब्रिड टमाटर की उन्नत पौध बनाने के लिए आवश्यक है कि छोटी अवस्था में एक बार पौध की नर्सरी स्टेज में ही दोगनी जगह पर ट्रान्सप्लान्ट कर दें, ऐसा नहीं करने पर पौधों में सही जड़ों का विकास नहीं हो पाता है तथा खेती में रोपण करने पर पौध मर जाती है। पौधशाला में हल्की-हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए।
पौधा रोपण – पौध रोपण एक महत्वपूर्ण पहलू है। अनियमित ऊँचाई वाली किस्मों की पंक्ति से पंक्ति की दूरी एवं पौधे से पौधे की दूरी 90×30 सेमी0 तथा नियमित ऊँचाई और कम फैलाव वाली किस्मों की पंक्ति एवं पौधों से पौधों की दूरी 60 से 45 सेमी0 होनी चाहिए, पौध रोपण करते समय निम्न बिन्दुओं का ध्यान रखना चाहिए।
1-पौध रोग रहित होनी चाहिए।
2-पौध 4 हफ्ते पुरानी होनी चाहिए।
3-जड़ों के विकास के लिए पौधषाला में दो बार ट्रान्सप्लान्ट करना चाहिए।
4-पौधे के तने की मोटाई आकर्षक होनी चाहिए, लम्बाई का अधिक महत्व नहीं होता है।
5-तने का रंग गहरा भूरा होना चाहिए।
6-सफेद रंग के पतले तने वाली पौध डेम्पिंग ऑफ बीमारी से अधिक प्रभावित होती है।
7-पौध में अत्याधिक जड़ें होनी चाहिए।
8-पौधशाला से पौध उखाड़ने से पूर्व सिंचाई करनी चाएि तथा 1 ग्राम वास्टिीन प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर देना आवश्यक है।
9-तैयार की हुई नालियों को पौध रोपण से 6 घण्टे पूर्व हल्की नम कर देना चाहिए।
10-शाम के समय सावधानीपूर्वक पौध उखाड़कर छायादार स्थान में रख देना चाहिए।
11-पौध उखाड़ने से लगान तक के अन्तराल को कम से कम रखना चाहिए।
12-पौधे लगाने के निष्चित स्थान पर 2.5 सेमी0 गहरा छेद बना लेना चाहिए।
13-स्वस्थ पौधे को इस छेद में रखकर हल्का से दबा देना चाहिए।
14-पौध रोपण के तुरन्त बाद 50 से 100 एम0एल0 पानी लगा देना चाहिए तथा तीन दिन तक पानी लगाते रहना चाहिए।
सिंचाई- 1-नए रोपित पौधों को प्रतिदिन 100 मिली0 पानी से (हाथ द्वारा या ड्रिप से) सिंचित करते रहना चाहिए।
2- पॉली हाउस में माइक्रो स्प्रिंकलर या ड्रिप से सिंचाई करनी चाहिए।
3- 30-40 दिन बाद पत्तियाँ सूखी रहनी चाहिए।
4- सिंचाई हफ्ते में दो बार करनी चाहिए।
5- पानी की अधिक मात्रा खेत में नहीं रहनी चाहिए।
6- ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि जमीन हर समय नम बनी रहे।
स्टेकिंग – पौधों को हर हालत में सीधा रखना चाहिए इसके लिए प्रत्येक पेड़ को बाँस की लकड़ी से बाँधना चाहिए या लाइन से तार के सहारे बाँध कर पौधा सीधा रखा जाना चाहिए।
कटाई-छंटाई – 1. पौधे के तने को जमीन से एक फीट की ऊँचाई तक साफ रखना आवश्यक है। (सभी पत्तियाँ या शाखाओं) को काटते रहना चाहिए। 2. पेड़ बड़े हो जाने पर 20 प्रतिषत पत्तियाँ जिनमें पुरानी, बीमारी युक्त हो को काटते रहना चाहिए ऐसा करने से पैदावार अधिक आती है।
खाद– 1.पाँच ग्राम प्रति पेड़ की दर से एन0पी0के0 प्रति हफ्ते डालना चाहिए। 2. 500 ग्राम तम्बाकू की सूखी पत्ती 100 ली0 पानी में भिगोकर पत्तियों को निकाल लें तथा तम्बाकू के पानी में 500 ग्राम यूरिया घोलकर 15 दिन में एक बार छिड़काव करते रहना चाहिए। 3. 5 ग्राम यूरिया, 10 ग्राम सूपर फास्फेट, 5 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश 500 मि0ग्रा बोरेक्स मिलाकर प्रति पेड़ प्रमि माह फूल आने से अन्तिम फल तोड़ाई तक देते रहना चाहिए।
कीट व रोग तथा नियन्त्रण:- कीटों के नियन्त्रण हेतु निम्नानुसार छिड़काव करना चाहिए।
कीट नियन्त्रण
फसल की अवस्था– –कीटों का नाम—–दवा का नाम ———-मात्रा—– —अभ्यिुक्ति |
1.पौधशाला——- – एफिड—— डाइमेक्रान फौस्कोनिडान —2 एम0एल0/ली0—- छिड़काव |
जैसिड—– रोगोर, मोनोक्रोटोफॉस——2 एम0एल0/ली0—– छिड़काव |
कैटरपिलर—–साइपर मिथरीन——–2 एम0एल0/ली0—– छिड़काव |
लीफ माइनर—रोगोर, मैटासिस्टाक्स—–1एम0एल0/ली0—– छिड़काव |
2.मुख्य फसल—— –माइट———फोस्माइट, कैल्थेन———–2एम0एल0/ली0—–छिड़काव |
पेन्टाक, वर्टीमेक——1/2एम0एल0/ली0—–छिड़काव |
फ्रूट वोरर—–साइपर मिथरीन मिथोमिल—-2एम0एल0/ली0—–छिड़काव |
रोग नियन्त्रण |
फसल की अवस्था—-बीमारी का नाम—–दवा का नाम — –मात्रा——–अभ्यिुक्ति |
1.पौधशाला —- —- डैम्पिंग आफ—- -डाइथेन एम 45———-25 ग्रा0/10—- सिंचाई करें |
वावस्टीन————–5 ग्रा0/10—- सिंचाई करें |
ब्लू कौपर————2 ग्रा0/12—– छिड़काव |
2.मुख्य फसल– —कालररोट————-रिडोमिल———1 ग्रा0 प्रति ली0—-छिड़काव |
ब्लूकौपर——2 ग्रा0 प्रति ली0—छिड़काव |
अर्ली ब्लाइट——–रिब्रल————–2 ग्रा0 प्रति ली0—-छिड़काव |
मैम्कोजेव– –2 ग्रा0 प्रति ली0- -छिड़काव |
लेट ब्लाइट———रिडोमिल———–1 ग्रा0 प्रति ली0—छिड़काव |
मैन्कोजेब— —-2 ग्रा0 प्रति ली0—छिड़काव |
पाउड्री मिल्डयू—वेटेविल सल्फर——-2 ग्रा0 प्रति ली0—छिड़काव |
कारवेन्डाजिन———2 ग्रा0 प्रति ली0—-छिड़काव |
फलों की तोड़ाई– यदि फलों की दूरस्थ बाजार में बिक्री करना है तो 50 प्रतिषत लाल रंग हो जाने पर फल को पकड़कर ट्विस्ट कर तोड़ना चाहिए तथा छायादार-स्थान पर ग्रेडिंग व पैकिंग करके बाजार भेजना चाहिए।
उत्पादनः-
सामान्य किस्में – 300-400 कुन्तल/हैक्टेयर(6-8 कुन्तल/नाली)।
हाइब्रिड (संकर) किस्में – 450-500 कुन्तल/हैक्टेयर (9-10 कुन्तल/नाली)।