Mushroom ki kheti kese start kare?

Mushroom ki kheti kese start kare-मशरूम की खेती एवं उसके फायदे-

मशरूम(Mushroom) एक मृतोपजीवी कवक है जो कि सड़े गले कार्बनिक पदार्थो पर उगता है। यह इन्ही सड़े-गले पदार्थों से अपना भोजन प्राप्त करता है, क्योंकि यह अपना भोजन क्लोरोफिल न होने के कारण स्वयं नहीं बना सकता। प्राकृतिक रूप से मशरूम की कई प्रजातियाँ पायी जाती है। इनमें से बहुत सी प्रजातियाँ खाने योग्य होती हैं, जबकि कुछ विशैले होते हैं। हमारे देश में 70 जातियों की, 180 प्रजातियाँ वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाषित की गयी है। बटन मशरूम (एगेरिकस ब्रूनिसेन्स) जिसका की विष्वभर में आमतौर पर बहुतायत से सफल उत्पादन किया जा रहा है, का सर्वप्रथम उत्पादन 1650 ई0में, फ्रांस में किया गया। इसके पष्चात् इसके उत्पादन की विधि का प्रसारण इग्लैंड में तथा इग्लैंड से अमेरिका तक फैल गया। इसके पष्चात् व्यवसायिक रूप् से मशरूम का उत्पादन चीन, कोरिया व ताइवान में आरम्भ हुआ। प्राकृतिक रूप से उगने वाली मशरूम गुच्छी (मोरकेला) का निर्यात भी हमारे देश से किया जाता है। वर्तमान में चीन एषिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश है तथा विष्व की कुल पैदावार का सबसे अधिक उत्पादन करता है।

हमारे देश में मशरूम का उत्पादन सर्वप्रथम सन् 1961 में हिमाचल प्रदेश में आरम्भ हुआ। उत्तरांचल में इसका उत्पादन, परीक्षण के रूप में सन् 1965 में औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण संस्थान चौबटिया में आरम्भ किया गया। हमारे देश की भौगोलिक स्थिति मशरूम की खेती के लिए अत्यंत उपयुक्त है, विषेशकर पर्वतीय अंचलों की। यहाँ की जलवायु बटन मशरूम की खेती के लिए विषेश रूप से उपयुक्त है। पर्वतीय क्षेत्रों के साथ-साथ मशरूम, मैदानी क्षेत्रों में भी पैदा किया जाता है। उत्तरांचल के ऐसे स्थल जिनकी ऊँचाई 5000 फीट से 7500 फीट तक है वहां मशरूम की खेती वर्श में आठ माह तक (मार्च से अक्टूबर माह तक) आसानी से की जा सकती है। 3000 फीट से 5000 फीट तक के ऊँचाई वाले स्थानों में, इसकी खेती माह नवम्बर से, फरवरी तक आसानी से की जा सकती है।

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मशरूम के प्रकार

  1. बटन मशरूम
  2. ढींगरी मशरूम
  3. मिल्की मशरूम

(ढींगरी)Oyster Mushroom ki kheti kese start kare

ढींगरी मशरूम का उत्पादन बटन मशरूम की तुलना में व्यवसायिक रूप में आसानी से किया जा सकता है। यह प्लूरोटस प्रजाति की है। पर्वतीय क्षेत्रों में अप्रैल से सितम्बर माह तक, मैदानी अथवा घाटी वाले क्षेत्रों में अक्टूबर से मार्च तक बिना बाहरी तापक्रम के आसानी से उगाया जा सकता है। इसके उत्पादन हेतु 20 से 30 डिग्री सेन्टीग्रट तापक्रम की आवश्यक ता होती है। प्रमुख प्रजातियां जैसे प्लूरोट्स सजोरकाजे, प्लू फलेबिलेट्स, प्लूसेपिडस, प्लू फोसूलेटेस, प्लू फलोरिडा, प्लू इरनजाय, प्लू ओस्ट्रिसस आदि। मशरूम का उत्पादन कृशि अवषेशों जैसे गेंहू, भूसा, धान का पराली, ज्वार, बाजरा, भुट्टे की पतियों, मंडुवा, लकड़ी का बूरादा, भुट्टे का अंदर का भाग इत्यादि पर इसे आसानी से उगाया जा सकता है। ढींगरी मशरूम का उत्पादन व्यवसायिक रूप से गेंहू के भूसे अथवा धान की पराली में किया जाता है। ढींगरी मशरूम का उत्पादन भूसे को बिना उपचारित किये सम्भव नहीं है।

गरम पानी से उपचार: गेहूँ के भूसे या धान के पुवाल, के 3 से 4 सेमी0 के छोटे-छोटे टुकड़े कर लिए जाते हैं। इनको ताजे पानी में, बड़े टैंकों या ड्रमों में 18 से 24 घण्टे तक भिगो दिया जाता है। पूरी तरह भूसा/पुवाल भीगने के बाद पानी निथार लिया जाता है, अब किसी बड़े मुँह वाले ड्रम या टब में पानी उबाल लिया जाता है। भीगे या पुवाल को बोरों में भरकर, मुँह बंद करके, गर्म पानी के ड्रम या टब में (जिसका तापक्रम 80-85 डिग्री सेंटीग्रेट हो) 10 से 15 मिनट तक डुबो दिया जाता है। जिससे पूरा भूसा या पुवाल पाष्चरीकृत हो जाय, षेश पानी की मात्रा निथार ली जाती है। भूसे में 70 प्रतिशत तक नमी षेश रहे, तत्पष्चात् स्पानिंग की जाती है।

रासायनिक उपचार: प्रति 10 किलोग्राम भूसे को 100 लीटर पानी में 7 ग्राम बावस्टीन एवं 100 मी0लीटर फार्मलीन के घोल में 18 घंटे भिगोया जाता है। तत्पष्चात् भूसे या पुवाल का पानी निथार कर स्पानिंग कर दी जाती है।

बीजायी(स्पानिंग) एवं फसल की तैयारी: उपरोक्त विधि द्वारा उपचारित भूसे या पुवाल में 2 प्रतिशत की दर से स्पानिंग (बीजायी) की जाती है। इस हेतु स्पान को भूसे में अच्छी तरह मिलाकरण 55×35 सेमी0 के छिद्रित पॉलीथीन थैलों (बैग्स) में अच्छी तरह भरकर थैलों को कमरों में 24 से 27 डिग्री सेंटीग्रेट तापक्रम पर रख दिया जाता है। जब थैलों में मशरूम का माइसिलियम (कवकजाल) पूर्ण रूप से फैल जाता है। तब क्षेत्रों को चाकू या ब्लेड से सीधा काटकर पॉलीथीन अलग कर लिया जाता है। भूसे या पुवाल के ठोस सिलिंडरों को 30 से 40 सेमी0 की दूरी पर रेक या बॉस के षेल्फ पर रख दिये जाते हैं। उत्पादन कक्ष का तापक्रम 20 से 30 डिग्री सेटीग्रेड पर नियंत्रित किया जाता है। कुछ दिनों में (8-10 दिन) मशरूम का निकलना प्रारंभ हो जाता है। जब मशरूम 6-8 सेमी0 के हो जाते है, तब तोड़ लिए जाते है। जब प्रथम फसल समाप्त हो जाती है, तब भूसे के ठोस सिलिंडर की 0.5 सेमी0 की बाहरी पर को छिलकर हटा लिया जाता है, जिससे नयी फसल के पिनहेड्स बनना प्रारम्भ हो जाय। दूसरी फसल 8-10 के अंतराल पर तथा तीसरी, चौथी फसल भी इस अंतराल पर आती रहती है। मशरूम तोड़ने के बाद, अच्छी तरह साफ कर छिद्रित पॉलीथीन के थैलों में रखकर ताजे मशरूम विक्रय हेतु भेज दिये जाते हैं। ढींगरी मशरूम को सूखाकर भी उपयोग में लाया जाता है।Oyster (Dhingri)Mushroom

सफाई/परिशोधन:

मशरूम उत्पादन कक्ष के चारों ओर सफाई बनाये रखना आवश्यक  है। कीट, फफूँदीयाँ के प्रकोप को नियंत्रण में रखने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए।

1- फोर्मेलीन 50 मी.ली (एक लीटर पानी में मिलाकर) का छिड़काव सप्ताह में एक बार उत्पादन कक्ष के चारों ओर करना चाहिए।

2- उत्पादन कक्ष को उपयोग में लाने से पूर्व 2 प्रतिशत फार्मेलिन व 0.1प्रतिशत नुवान का छिड़काव करना चाहिए।

3- स्पान फैलाव के समय फफूँदियों का प्रकोप होने पर उस भाग को खुरचकर, बावस्टिन0.05 प्रतिशत से उपचार करना चाहिए।

4- प्रतिस्पर्धा फफूँदियों की उपस्थिति में उस स्थान का उपचार, रूई को 4 प्रतिशत फार्मेलिन में भिगोकर करना चाहिए।

आर्थिक लाभ

ढींगरी मशरूम का उत्पादन, , शुष्क पदार्थ जिस पर यह उगाया जाता है, 30 से 40 प्रतिशत तक उत्पादन देता है। पॉलीथीन बैगों में इसको उगाया जाना अच्छा होता है क्योंकि इसमें नमी बनी रहती है तथा व्याधियों से बचाव रहता है। वर्शभर में आसानी से ग्रीश्म ऋतु में, दो फसल ली जा सकती है। प्रति फसल दो क्विंटल भूसा या पुवाल की आवश्यक ता होती है व लगभग 50 प्रतिशत का शुद्ध लाभ अर्जित किया जा सकता है।

ढींगरी Mushroom ki kheti kese start kare- मशरूम का आय-व्यय/लागत-लाभ विवरणः

क्रं0सं0 सामग्री मात्रा दर धनराशि (रू0)
                 आवर्ती व्य
1 गेहूँ/धान का भूसा 2 कु0 250/- प्र0कु0 500/-
2 पॉलीथीन बैग्स (55×35 सेमी0) 100 1/- प्रति 100/-
3 स्पॉन (बीज) 30 बोतल 330/-
4 कीट नाश क/फफूँदनाशक 200/-
5 अन्य व्यय (मजदूरी/बिजली) 400/-
  योग 1530/-
                   अनावर्ती व्ययः
1 फ्रूट स्प्रेयर 1 250/- प्र0कु0 500/-
2 बाल्टी, ड्रम, रेक (बॉस) 100 1/- प्रति 100/-
  योग 1530/-
  अनावर्ती व्यय पर हृास 10 प्रतिशत  
               उत्पादनः
प्रति बैग 1 किग्रा0
100 बैग पर 100×1= 100 किग्रा0
विक्रय मूल्य 30/ रू0 प्रति किग्रा0  रू0  3000/-
कुल व्यय रू0 1530/+200/-  रू0  173/- 1730/-  
सकल लाभ रू0 3000/-  रू0 1730/- 1270/-  
इस प्रकार दो फसल लेने पर रू0 2540/- का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

मशरूम  की खेती के लिए आवश्यक तत्व

  • खाद: मशरूम की खेती के लिए, समान भूमि में दो से तीन फुट की गहराई तक की खाद की आवश्यक होती है। खाद के रूप में जैविक खाद उपयोगी होती है।
  • बीज या स्पॉन: मशरूम खेती के लिए बीज या स्पॉन की आवश्यकता होती है। बीजों की खरीद मशरूम  के प्रकार पर निर्भर कती है। अधिकांश  मशरूम  के लिए, स्पॉन की उपलब्ध होते हैं।
  • मशरूम की खेती हेतु एक साफ और स्वच्छ कमरे की आवश्यक होती हैं। इसमें एक साफ स्थान, स्प्रे बोतल, बाजार से खरीदे गए स्पॉन, एयर कंडीशनर, स्प्रे बोतल की शाखा , लाइटिंग और विभिन्न सामानों की आवश्यक होती है।
  • जल: मशरूम की खेती के लिए पानी की आवश्यकता होती है। मशरूम  की खेती के दौरान जल की आवश्यक उत्पादकता के साथ बढ़ती है।

मशरूम  की खेती के लाभ- Health Benefit of Mushroom

  • उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य संसाधनों की उत्पादन।
  • कम लागत और उच्च मूल्य बिक्री।
  • स्वास्थ्यप्रद विकल्प। मशरूम विभिन्न पोशण तत्वों से भरपूर होते हैं। इसलिए इसका सेवन आपके स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है।
  • साल भर खेती की आवश्यक नहीं होती है। मशरूम की खेती मुख्य रूप से अंडाशय से उत्पादित होती है इसलिए मशरूम  की खेती से साथ ही जीवाणु और पेषीयों के नियंत्रण में मदद मिलती है।
  • मशरूम की खेती एक उपजाऊ व्यवसाय है जो उत्पादकता के साथ-साथ एक साथ विकल्प भी प्रदान करता है।
  • मशरूम की खेती षुरू करने के लिए बहुत कम पूंजी की आवश्यक होती है।
  • मशरूम की खेती के लिए विषेश जगह नहीं चाहिए होती है, यह आसानी से घर के अंदर भी की जा सकती है।
  • अधिकतर देषों में मशरूम की खेती समर्थित की जाती है और सरकार द्वारा भी इसकी तुलना में कुछ विषेश योजनाएं चलाई जाती हैं
  • मशरूम की खेती एक ऐसी उद्योगिक गतिविधि है जो सूखे की स्थिति में भी उत्पन्नता को बरकरार रखती है।
  • मशरूम की खेती उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य संसाधन बनाए जा सकते हैं जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक होते है।
  • मशरूम की खेती से उत्पादित उत्पादों का बाजार विष्वसनीय होता है और उन्हें अच्छी मूल्य मिलता है।
  • मशरूम की खेती में उत्पादकता तेजी से बढ़ती है और इससे किसानों को जल्दी से लाभ होता है।
  • मशरूम की खेती में बढ़ते संभावित जोखिम न्यूनतम होते है जो किसानों के लिए उन्नति का एक उत्कृश्ट अवसर बनाते हैं।
  • मशरूम की खेती से किसान देश  और विदेश  में आर्थिक रूप से स्थायी रूप से लाभान्वित होते हैं।
  • मशरूम की खेती में कुछ खास तकनीकों की आवश्यक होती है जो किसानों को लाभ देने में सहायता करती हैं।
  • आधुनिक तकनीकों के उपयोग से मशरूम की खेती में बढ़ती उत्पादकता के कारण यह एक आर्थिक उत्पादक उद्योग बन गई है।
  • इसके अलावा, मशरूम की खेती एक सामाजिक उद्योग भी है जो किसानों को आर्थिक रूप से सश क्त करता है।
  • मशरूम की खेती एक स्वास्थ्यवर्धक खाद्य वस्तु होती है जो विभिन्न विटामिन, प्रोटीन और आवश्यक तत्वों से भरपूर होती है।
  • अधिकांश खाये जाने वाले मशरूम , जैसे कि बटन मशरूम  और ढिंगरी मशरूम  आदि।

मशरूम  की खेती के लिए उपयुक्त जगह का चयन करें

मशरूम  की खेती के लिए एक स्थान चुनना बहुत महत्वपूर्ण होता है। मशरूम  की खेती के लिए उपयुक्त जगह का चयन करते समय उचित दृश्टिकोण रखें। उचित दृश्टिकोण रखने से आप उस जगह को चुन सकते हैं जहां संभवतः सबसे अधिक प्रभावी रूप से मशरूम  की खेती की जा सकती है।

जगह चुनने निम्नलिखित बतों का ध्यान रखें

  • सबसे पहले, आपको एक स्थान चुनना होगा जो जलवायु और भूमि के लिए उपयुक्त हो। मशरूम उगाने के लिए धूम्रपान न करने वाले, षुश्क एवं उमस भरे स्थानों को चुनना उचित होगा।
  • मशरूम की खेती के लिए एक स्थान चुनते समय, समुद्र तल से कम ऊँचाई पर स्थित जगह चुनने का प्रयास करें। इससे स्थान का तापमान नियंत्रित रहता है जो मशरूम  के उत्पादन के लिए उचित होता है।
  • सभी तरह के मौसम के लिए ढांचे या अंतजाल उपयोग करना उचित होता है। इससे मशरूम की खेती ज्यादा संभव होती है और इससे फसल की उत्पादकता भी बढ़ती है।
  • स्थान चुनते समय समुद्र तल से कम ऊँचाई पर स्थित जगह के लिए जल आपूर्ति के बारे में भी विचार करें। एक उचित जल आपूर्ति आवश्यक है ताकि मशरूम उगाने के दौरान अपर्याप्त पानी की समस्या न हो।
  • इन सभी बातों को ध्यान में रखकर आप मशरूम की खेती आसानी से कर सकते हैं।
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