गुलाब की खेती कब और कैसे करें?

गुलाब की खेती कैसे करें

प्रस्तावना

भारत के पुष्प उद्योग में गुलाब का प्रथम स्थान है प्रत्येक धार्मिक, सामाजिक कार्यक्रमों में गुलाब पुष्प का उपयोग अधिक से अधिक मात्रा में किया जाता है, इसके अतिरिक्त घरों में गुलदस्ता बनाने तथा मंदिरों में पूजा हेतु गुलाब का उपयोग एक सामान्य प्रक्रिया है।

जलवायु-

गुलाब की खेती हेतु अच्छी उर्वरा शक्ति तथा 6-7 पी.एच.मान वाली दोमट मिटटी की आवश्यकता होती है इसके अच्छे उत्पादन के लिए अधिक आद्रता तथा 17 से 27° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है, भूमि ऐसे स्थान पर चयनित की जानी चाहिए जहाँ कम से कम आधे दिन धूप अवश्य आती है।

प्रवर्धन

देशी गुलाब या रोजा मल्टीफ्लोरा के मूलवृत्तों की 15-20 सेमी. लम्बी कलमों (कटिंगस) को जुलाई-अगस्त में 500 पी.पी.एम.(500 मि.ग्रा. एक लीटर पानी में) एन.ए.ए. नामक हारमोन के घोल (क्वीक डिप विधि) से उपचारित कर रोपित करना चाहिए। लगभग 45 दिन में इन कटिंगस पर जड़ निकल आती हैं। जब इन कटिंगस पर पैंसिल की मोटाई के बराबर शाखायें आ जायेगी तब अगले वर्ष माह मई अथवा सितम्बर में कलिकायन (बडिंग) द्वारा एच्छिक प्रजाति के पौधे बनाकर तैयार की गई भूमि में रोपित कर लेना चाहिये।

गुलाब की खेती कैसे करें-पौध लगाने का समय

  1. निचली घाटियों में- माह अक्टूबर से नवम्बर
  2. ऊँचाई वाले स्थानों पर – माह दिसम्बर से जनवरी

     दूरी  :   1-1 मीटर

   खाद एवं उर्वरक-   सड़ी गोबर की खाद 5 किग्रा0, नत्रजन 50 ग्राम(यूरिया), फास्फोरस 40 ग्राम(डी.ए.पी.), पोटाश 40 ग्राम(एम.ओ.पी.) प्रति पौध।

     सिंचाई –  गर्मियों में प्रत्येक सप्ताह तथा जाड़ों में 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए।

कटाई-छटाई-

गुलाब में कटाई का कार्य सबसे महत्वपूर्ण हैं पतली, सूखी, रोग ग्रस्त तथा एक दूसरे से उलझी हुई शाखाओं को काट देना चाहिए। हाइब्रिड-टी किस्मों में 3-5 मोटी शाखाओं को रखा जाता है, और अन्य शाखाओं को काट दिया जाता है। शाखाओं को इस प्रकार रखें कि उनमें 5 से 6 आँख रहे, अन्तिम आँख रहे, अन्तिम आँख बाहर की तरफ हो। फ्लोरिबन्डा प्रजातियों में कटाई-छटाई की आवष्यकता कम होती है।

पुष्पों की कटाई एवं पैकिंग-

पुष्पों की बाहरी दो-तीन पंखुडियों के खुलने पर पुष्प डण्डी को निचले सिरे से एक बड(गाँठ) छोड़कर प्रातः आठ बजे तक काट कर 2-3 घन्टे पानी में डुबाये रखने के पश्चात्, अलग-अलग रंगों की एक-एक दर्जन की गड्डियाँ बनाकर अखबारी कागज में लपेट कर, पुष्प-वृत्तों के आकार के गत्ते के बक्सों में पैक कर बाजार भेजना चाहिए।

पुष्पों की कटाई एवं पैकिंग-

पुष्पों की बाहरी दो-तीन पंखुडियों के खुलने पर पुष्प डण्डी को निचले सिरे से एक बड(गाँठ) छोड़कर प्रातः आठ बजे तक काट कर 2-3 घन्टे पानी में डुबाये रखने के पश्चात्, अलग-अलग रंगों की एक-एक दर्जन की गड्डियाँ बनाकर अखबारी कागज में लपेट कर, पुष्प-वृत्तों के आकार के गत्ते के बक्सों में पैक कर बाजार भेजना चाहिए।

अच्छी प्रजातियाँ-

हैपीनैस, एवन, रेडपिचर, रक्तगंधा, पिंक परफैक्ट, क्वीन एलीजाबेथ (गुलाबी रंग)। आल गोल्ड, गोल्डन जाइन्ट, चितवन, गोल्ड डौट (पीला रंग)। क्रिमसन ग्लोरी ओक्लोहोमा, लालबहादुर, चारू गंधा (गहरा ला रंग)। ओरेन्ज सेन्शेसन, सुपर स्टार, सनफायर तथा मोन्टेजुमा (नारंगी) एवं डा.होमी भावा, हंस, जवाहर, नवनीत (सफेद रंग)।

आय

एक नाली क्षेत्रफल (200 वर्गमीटर) में गुलाब की खेती खुले क्षेत्र में करने पर लगभग रू. 14000.00 की लागत आती है। अच्छा प्रबन्धन करने पर प्रति नाली रू. 6000.00 का शुद्ध लाभ अर्जित किया जा सकता है।

गुलाब की खेती कैसे करें-संरक्षित खेती-

उत्तम कोटि तथा निर्यात गुणवत्ता वाले यूरोपियन प्रजातियों की खेती पॉलीहाउस में ही सफलतापूर्वक की जा सकती है। पॉलीहाउस में न्यूनतम तापमान 13° सेल्सियस तथा अधिकतम 32 से 33° सेल्सियस व आद्रता 70 से 80 प्रतिशत तक होनी आवश्यक है। न्यूनतम तापक्रम से कम तापक्रम होने पर फूल की कलिकायें बनना कम हो जाती है और अधिकतम सीमा से अधिक तापक्रम हो जाने पर कलियाँ काली पड़ कर सूखने तथा गिरने लगती है। इसी प्रकार आद्रता में कमी होने पर पौधों की वृद्धि रूक जाती है साथ ही एफिड (कीट) लगने की सम्भावना बढ़ जाती है, जिससे पुष्प उत्पादन प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है। अधिक आद्रता के कारण फफूँदी जनित रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है।

भूमि की तैयारी-

सुरक्षित खेती के लिए उपयुक्त 500 वर्ग मीटर के लिये 300 कु0 सड़ी गोबर की खाद लगभग 20 किग्रा. कीटनाशक ग्रेन्यूल या धूल को मिटटी में अच्छी तरह मिलाकर मिटटी को भुर-भुरी बना लेना चाहिए। पौध रोपण के लिए 75 सेमी. चौड़ी व जमीन की सतह से 30 सेमी. ऊँची क्यारियाँ तैयार करनी चाहिए तथा दो क्यारियों के बीच में लगभग 40 सेमी. चौड़ी नालियाँ बनानी चाहिए।

पौध रोपण-

क्यारियों में किनारे से 15 सेमी. छोड़कर दो लाइनें बनाकर 25 सेमी की दूरी पर पौध रोपण करना चाहिए।

व्यवासायिक प्रजातियाँ-

पॉलीहाउस में उत्पादन करने हेतु ग्रान गाला, फस्टरेड(लाल), कोन्जाही, गोल्डन गेट, फोनफीटी गोल्डन क्रिस्टल, (पीला), कूल ब्रीज, वियान्का तथा पोलों (सफेद), नैरेन्जर (नांरगी), एमोरासा, नोबेल्स(पिंक) प्रजातियाँ उत्तम हैं।

सिंचाई-  पॉलीहाउस में अच्छे उत्पादन के लिए भूमि में हमेशा नमी बनी रहनी चाहिए। पानी का ठहराव बिल्कुल नहीं होना चाहिए, अन्यथा जड़ सड़न रोग के लगन की पूरी सम्भावना रहती है। पौध रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई अवश्य कर लेनी चाहिए, ताकि जड़ सही तरीके से स्थापित हो सके।

खाद एवं उर्वरक-

गुलाब को पोशक तत्वों की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। भूमि की तैयारी के समय 400 कु0 गोबर की खाद, 25 किग्रा. डी.ए.पी. तथा 10 किग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश मिटटी में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिए। पौध की बढ़वार लेने की अवस्था में 1.5 ग्रा. एन.पी.के. (20ः20ः20) प्रति पौंध सप्ताह में दो बार और पुष्प कलियाँ बनना प्रारम्भ होने पर 1.5  ग्रा. एन.पी.के. (20ः20ः20)   प्रति पौध सप्ताह में चार बार देने से फूलों की गुणवत्ता अच्छी हो जाती है।

प्रमुख कीट, व्याधियाँ तथा उनकी रोकथाम-

    1. शल्क कीट (स्केल)- यह कीट तने पर भारी मात्रा में शल्क की तरह चिपके रहते है।

(1) इसके नियंत्रण के लिए रोगग्रस्त भाग को काटकर जला देना चाहिये।

(2) मोनोक्रोटोफॉस 1.5 मि.ली. या मिथाइल डेमिटान 1 मि.ली. दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

    1. सूडियाँ- यह कीट कोमल पत्तियों, तने तथा कलियों का रस चूसते है।

नियंत्रण हेतु मैलाथियान 50 ई.सी. या डाइमिथोएट 30 ई.सी., 1.5 मि.ली./लीटर पानी की दर से बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

    1. थ्रिप्सः यह कीट फूलों की पंखुडियों का रस चूसते हैं।

नियंत्रण हेतु मैलाथियान 50 ई.सी. या डाइमिथोएट 30 ई.सी., 1.5 मि.ली/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

    1. सफेद चूर्णिल आसिता पाउड्री मिल्ड्यूः यह फफूँदी जनक रोग है इसमें पत्तियों तथा तनों पर सफेद चूर्ण जमा हो जाता है जिससे पत्तियाँ पीली पड़ जाती है।

नियंत्रण हेतु कैराथेन 50 ई.सी. 1 मि.ली. या कैलिक्सिन 1 मि.ली./लीटर पानी के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

    1. काले धब्बे की व्याधिः यह भी फँफूदी जनित रोग है। इसमें पत्तियों पर काले-भूरे रंग के धब्बे बन जाते है।

नियंत्रण हेतु डाइथेन एम-45 का 0.2 प्रतिषत (2ग्राम/ली.) या मैन्कोजेब 0.2 प्रतिषत (2 ग्राम/ली.) घोल का छिड़काव करना चाहिए।

आय-

सीमित अध्ययनों के बावजूद यह पाया गया है कि 500 वर्गमीटर के पॉली हाउस में गुलाब की खेती करने में प्रथम वर्ष लगभग रू. 1,34,300.00 तथा द्वितीय वर्ष में  रू. 56,880.00 (अचल पूँची रू. 2,66,500.00 पॉली हाउस एवं सिंचाई उपकरणों के अतिरिक्त) व्यय होता है। अच्छा प्रबन्धन करने पर प्रथम वर्ष में लगभग रू. 1,25,000.00 द्वितीय वर्ष से लगभग रू. 2,00,000.00 तक की शुद्ध आय अर्जित की जा सकती है।

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