गेंदा की खेती से हर साल कमा सकते हैं लाख रुपये-2023

गेंदा की खेती की जानकारी

प्रस्तावना

गेंदा के फूलों का उपयोग माला बनाने, तीर्थ स्थानों में पूजा हेतु, उद्यानों में सुन्दरता बढ़ाने तथा विभिन्न पुष्प सज्जाओं में बहुतायत में किया जाता है। गेंदे का उत्पादन सुगन्धित तेल एवं हैनेनिन खाने योग्य डाइ (रंग) बनाने हेतु भी किया जाता है आजकल सब्जी फसलों में कीटरोधक के रूप में भी गेंदे का उपयोग किया जाता है।

मृदा एवं जलवायु

गेंदे को सभी प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है फिर भी अच्छे उत्पादन हेतु अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि जिसका पी.एच.मान 7 से 7.5 के मध्य हो उत्तम रहती है। पर्वतीय क्षेत्रों में सर्दी के कुछ समय को छोड़कर वर्ष भर गेंदे को उगाया जा सकता है।

प्रसारण

गेंदा का प्रसारण बीज द्वारा किया जाता है। स्वस्थ बीज आमतौर पर गहरे काले रंग का होता हैं, बीज बोने हेतु क्यारियों की अच्छी खुदाई कर उसमें गोबर की छनी खाद अच्छी प्रकार मिला कर मिट्टी को भुर-भुरी बना लेना चाहिए। बीज की बुवाई पक्तियों में करनी चाहिए। बुवाई के बाद बीज को गोबर की खाद एवं मिट्टी के मिश्रण से अच्छी तरह ढक देना चाहिए। बीज के जमाव हेतु 20 से 28° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। बुवाई के 20 से 25 दिन पश्चात पौध रूपाई हेतु तैयार हो जाती है। एक हैक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 700 से 800 ग्राम. बीज की आवश्यकता होती है।

गेंदा की खेती की तैयारी, खाद एवं उर्वरक

रोपाई से पूर्व खेत की अच्छी खुदाई कर लेनी चाहिए। एक नाली क्षेत्रफल के लिए 10 कु0 गोबर की खाद, 8 किग्रा. नाइट्रोजन 4 किग्रा. फास्फोरस एवं 2 किग्रा. पोटाश की आवश्यकता होती है इसमें नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा अन्य सभी खाद एवं उर्वरकों को खेती की तैयारी के समय अच्छी तरह भूमि में मिला देना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा पौध रोपण के एक माह बाद देनी चाहिए।

गेंदे की किस्में एवं प्रजातियाँ

   गेंदा मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है। 1. अफ्रीकन गेंदा    2. फ्रैन्च गेंदा

  1. अफ्रीकन गेंदा

अफ्रीकन गेंदा के पौधे 90 से 95 सेमी. तक लम्बे तथा बड़ी-बड़ी शाखाओं वाले होते है। फूलों का रंग पीला, सुनहरा पीला, सफेद, नारंगी आदि होता है।

  1. फ्रैन्च गेंदा

फ्रैन्च गेदा के पौधे अफ्रीकन गेंदे की अपेक्षा छोटे तथा पुष्प भी छोटे होते है। इस जाति के पौधों की वृद्धि तीव्र गति से होती है, इस कारण फसल अफ्रीकन गेंदे की अपेक्षा जल्दी आ जाती है। फ्रेन्च गेंदा की किस्मों को पौधों की ऊँचाई के आधार पर विभक्त किया जाता है।

 

छोटे पौधे-

फ्लैम, फ्लेमिंग फायर डबल, रस्टी रेड।

सबसे छोटे पौधे –

इस वर्ग के पौधे 15 सेमी. तक ही बढ़ते हैं इसकी प्रजातियाँ गोल्ड, जिप्सी आरेंज फ्लेम, डैन्टी मरीटा आदि है।

सुपर फैन्च-

इस वर्ग के अन्तर्गत स्पार्की, स्पेनिश-ब्रोकैड, बोलरो गोल्डन बॉय, जिप्सी आदि हैं।

रोपण- गेंदा की खेती जानकारी

अफ्रीकन गैदे को 40 सेमी. से 40 सेमी. की दूरी पर लगाना चाहिए तथा फ्रैन्च किस्म के गेंदा को 20 सेमी. से 20 सेमी. की दूरी पर लगाना चाहिए।

सिंचाई

     रोपण के तुरन्त बाद अच्छी सिंचाई कर देनी चाहिए। गर्मी के मौसम में 4-5 दिन में तथा जाड़ों में 8 से 10 दिन के अन्तराल में सिंचाई करना चाहिए।

पिंचिंग(कलिका नोचन)

इस प्रक्रिया में गेंदा के पुश्पों में प्रारम्भ में फूलों की कलियों को हटा दिया जाता है ताकि पौधे की वृद्धि अच्छी हो सके और अधिक पुश्प उत्पादन हो सके। रोपाई 40 से 45 दिन के बाद, जब पौधों में 1-2 पुष्प कलिया बननी प्रारम्भ होती है उस समय पिंचिग कर लेनी चाहिए।

पुष्पों की कटाई-

फूलों को पूरा खिल जाने पर की तोड़ना चाहिए, पुष्प की कटाई सुबह अथवा सायं काल ही की जानी चाहिए। प्रतिनाली क्षेत्र से मौसम के अनुसार 2.5 कु. से 4.5 कुन्तल तक पुश्प प्राप्त हो जाते है।

कीट तथा व्याधियाँ-

   गेंदा कीट तथा व्याधियों के लिये काफी प्रतिरोधक क्षमता रखता है। फिर भी कुछ कीट व्याधियों का प्रकोप हो ही जाता है।

स्पाइडर माइट-

जब गेंदे के फूल खिलने लगते है उसे समय इसके पत्तियों पर स्पाइडर माइट लगने लगते है।

नियंत्रण-

इसके नियंत्रण हेतु 1 मिली. मैटासिस्टॉक एक लीटर पानी में घोल बना कर छिड़कावा करना चाहिये।

प्लग्स-  यह कीट गेंदे की पत्तियों को खाता है

नियंत्रण – इस कीट की रोकथाम के लिए 1 मिली. मैलाथियान/लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए।

पावड्री मिलड्यू –  इस कीट की रोकथाम के लिए 1 मिली. मैलाथियान/लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए।

नियंत्रण – कैराथेन 1 मिली./लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए।

आय-   एक नाली क्षेत्रफल में गेंदे की खेती करने में लगभग 3500.00 रूपया व्यय हो जाता है, और लगभग रू 3,000.00  की शुद्ध आय प्राप्त की जा सकती है।

बीज उत्पादन- गेंदे का बीज उत्पादन कर भी अच्छी आय की जा सकती है साधारण गेंदे का बीज 1000-1200 रूपया प्रति किग्रा. तक बिक जाता है। किन्तु इसमें अलग-अलग प्रजातियों का बीज उत्पादन करने के लिए 1 से 1.5 किमी. तक की आइसोलेशन दूरी अवश्य होनी चाहिए। अच्छे प्रबन्धन से अफ्रीकन गेंदा का 6 से 7.5 किग्रा. तथा फ्रैन्च गेंदेे का 2 से 2.5 किग्रा. तक प्रति नाली बीज का उत्पादन किया जा सकता है।

कट फ्लावर्स का पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमैन्ट

तेजी से बढ़ते आधुनिकीकरण के कारण आज विभिन्न उत्सवों, सरकारी-गैर सरकारी कार्यक्रमों एवं अन्य सामाजिक समारोहों में पुष्पों के अनेक प्रकार के उपयोग के कारण कट फ्लावर्स की माँग बाजार में काफी बढ़ गई हैं कट फ्लावर्स बोरियों तथा गाड़ियों से फूलों की थोक बाजार में पहुँचाने जाते है। इस व्यवसाय में अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए कुछ साधारण किन्तु महत्वपूर्ण तकनीकी तथा सावधानियाँ अधिक उपयोगी हो सकती है।

हार्वेस्टिंग (कटाई)-

कट फ्लावर्स को क्लोइड या टाइटबड की दषा में हार्वेस्ट करना चाहिए। टाइट-बड स्टेज कट फ्लावर्स की पैकिंग के लिए बहुत सुविधाजनक होती है तथा अधिक संख्या में भी पैकिंग आसानी से की जा सकती है। हार्वेस्टिंग के लिए प्रातः काल का समय ही अधिक उपयुक्त होता हैं सुबह के समय तापमान कम होता है और फ्लावर शूटस अधिक टरजिड अवस्था (जल की समुचित मात्रा के कारण फूल, पत्तियों का कड़ापन) में होते है। इससे कट फ्लावर्स अधिक ताजे दिखाई पड़ते है। साथ ही पैकिंग के लिए भी अधिक उपयुक्त रहते है।

पैंकिग-

यह बहुत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो कट फ्लावर्स को पूर्ण तरोताजा स्थिति में ग्राहक तक पहुँचाने में सहायक है। कट फ्लावर्स की पैकिंग से पहले अनावश्यक पत्तियों को तेज चाकू से काट कर अलग कर देना चाहिए। कम से कम पत्तियाँ रहने से पानी का क्षरण कम होता है। इस प्रकार छाँटे गये कट फ्लावर्स को एक-एक दर्जन के ग्रुप में अलग करके अखवारी कागज से लपेट कर छोटे बंडल बना लेने चाहिए। पैकिंग मैटीरियाल में अखबारी कागज सबसे अधिक उपयुक्त पाया गया है इसके प्रयोग से कट फ्लावर्स के चारों ओर वायु का संचार बराबर होता रहता है। जिससे पैकिंग का तापमान अपेक्षाकृत कम रहता है। पैकिंग के तापमान को कम रखने के लिए कभी भी गीले कपड़े या पानी को छिड़काव का प्रयोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि इससे जीवाणुओं के पनपने की आशंका बढ़ जाती है तथा कट फ्लावर्स में सड़न की संभावनायें अधिक रहती है। पैकिंग से पूर्व पुष्पों के कटे भाग को मॉस ग्रास से ढकना पुश्पों को अधिक तरोताजा रखता है। पुष्पों के इस प्रकार तैयार छोटे बण्डलों को उनके आकार के अनुसार छिद्रयुक्त गत्ते की पेटियों में भेजने से पुष्प सुरक्षित बाजार तक पहुँचाये जा सकते है।

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